सिनेमा एवं मनोरंजन >> भारतीय सिने सिद्धांत भारतीय सिने सिद्धांतअनुपम ओझा
|
8 पाठकों को प्रिय 289 पाठक हैं |
भारतीय सिने सिद्धांत
‘‘मैं अक्सर महसूस करता हूँ कि हमारी जनता एक तरफ व्यवसायिक विकृतियों का शिकार है तो दूसरी तरफ उन विशिष्टतावादी फिल्मकारों की जिनके शब्दों का उस पर कोई असर नहीं होता और जो उसे और उलझा देते हैं। मैं सोचता था कि हमारे गम्भीर फिल्मकार इस देश के मिथकों और लोक-परम्पराओं को उसी तरह आत्मसात कर सकेंगे जैसे अकीरा कुरोसोवा ने जापान के क्लासिकी परम्परा को किया है और फिर एक नया लोकप्रिय फॉर्म विकसित हो सकेगा। उल्टे हम पाते हैं कि पश्चिम के विख्यात फिल्मकारों में ही उलझे हैं हमारे लोग और कभी-कभी उनकी नाजायत नकल भी करते हैं। हमें पहले ही नहीं मान लेना चाहिए कि जनता प्रयोग और नवीकरण के मामले में तटस्थ है।’’
उत्पल दत्त
हिन्दी सिनेमा एक साथ ढेर सारे मिले जुले प्रभावों से परिचालित है। एक तरफ हॉलीवुड सिनेमा, लोकनाट्य रुपों तथा पारसी थियेटर की खिचड़ी दूसरी तरफ पौराणिक मिथकों का लोक-लुभावन स्वरूप तीसरी तरफ इटैलियन नवयथार्थवादी सिनेमा का प्रभाव। इन सबके बीच भारतीय सिनेमा के अपने मूल गुणों को पहचानने परखने की कोशिश ही इस पुस्तक का ध्येय है। दादा साहब फाल्के ने भारतीय सिनेमा को व्याकरण में कसने के लिए एक भारतीय सिने-सिद्धान्त की आवश्यकता महसूस की थी लेकिन वे स्वयं ऐसा कर नहीं पाए और आगे भी नहीं किया जा सका।
भारतीय सिने-सिद्धान्त और सिने-कला, इतिहास, पटकथा की संरचना आदि पर छिटपुट टिप्पणियों, लेखों, विचारों को एकतित्र कर सिने-सिद्धान्त का अवलोकन इस पुस्तक के मुद्दों में केन्द्रीय है। सिनेमा की कला-भाषा का ठीक से शिक्षण नहीं होने के चलते एक दृष्टिहीन सिनेमा का व्यवसायिक लुभावना सम्मोहन समाज पर हावी है। यह पुस्तक भारतीय सिने-सिद्धान्त को लेकर किंचित भी चिन्तित व्यक्तियों को गम्भीरता से सोचने के लिए तथ्य उपलब्ध कराएगी, साथ ही एक सामूहिक प्रयास के लिए प्रेरित करेगी।
भारतीय सिने-सिद्धान्त और सिने-कला, इतिहास, पटकथा की संरचना आदि पर छिटपुट टिप्पणियों, लेखों, विचारों को एकतित्र कर सिने-सिद्धान्त का अवलोकन इस पुस्तक के मुद्दों में केन्द्रीय है। सिनेमा की कला-भाषा का ठीक से शिक्षण नहीं होने के चलते एक दृष्टिहीन सिनेमा का व्यवसायिक लुभावना सम्मोहन समाज पर हावी है। यह पुस्तक भारतीय सिने-सिद्धान्त को लेकर किंचित भी चिन्तित व्यक्तियों को गम्भीरता से सोचने के लिए तथ्य उपलब्ध कराएगी, साथ ही एक सामूहिक प्रयास के लिए प्रेरित करेगी।
|
लोगों की राय
No reviews for this book